शुक्रवार, 17 सितंबर 2010

खुश होता है दिल ...

जब वतन की बात चलती है तो खुश होता है दिल ,
जब अमन की बात चलती है तो खुश होता है दिल ।

देश पर गन्दी नज़र डाले सदा उस शख्स के,
जब दमन की बात चलती है तो खुश होता है दिल ।

द्वैष, नफ़रत की भड़कती जा रही इस आग के,
जब शमन की बात चलती है तो खुश होता है दिल ।

कान फ़ोढू शोर वाले गीत के आगे कभी,
जब भजन की बात चलती है तो खुश होता है दिल ।

फ़ूल खूशबू बाँटते निस्वार्थ हो ऐसे किसी
जब चमन की बात चलती है तो खुश होता है दिल ।

यूं तो बातें हैं बहुत दुल्हन के जीवन में मगर,
जब सजन की बात चलती है तो खुश होता है दिल ।

लिख के मुंशी जी गए हैं सब कथाएं श्रेष्ठ, पर,
जब कफ़न की बात चलती है तो खुश होता है दिल ।

मंगलवार, 29 जून 2010

आज के लोगों को जाने क्या पता क्या चाहिए..

आज के लोगों को जाने क्या पता क्या चाहिए ?
इक नया हंगामा कोई रोज़ होना चाहिए ।

मन्दिरो-मस्जिद की हो,मण्डल की या शेयर की बात,
ध्यान लोगों का उन्हें कुछ उलझा-उलझा चाहिए ।

हँसते-गाते लोग फूटी आँख भी भाते नहीं,
नैनरंजन को उन्हें अब खूँख़राबा चाहिए ।

खेलते बच्चों के हाथों में दिये ख़ंजर थमा,
क्योंकि अब मन्ज़र उन्हें कुछ बदला-बदला चाहिए ।

लोग भड़कें या मरें या देश को लग जाए आग,
उन का तो अख़बार काले दाम बिकना चाहिए ।

एक मंशा, एक मक़्सद सिर्फ़ उन का रह गया,
भूल जाऐं हम कि हमको रोटी-कपड़ा चाहिए ।

यह ज़रूरी है तेरी संजीदा आँखों को ’यक़ीन’
बरग़लाने के लिए कुछ तो अजूबा चाहिए ।

पुरुषोत्तम ’यक़ीन’

उन को यारब ! इन बलाओं से बचा

उन को यारब ! इन बलाओं से बचा,
दुल्हनें जलती चिताओं से बचा ।

खुल गई है अब हक़ीकत चाँद की,
हमको परियों की कथाओं से बचा ।

नाव कागज़ की बना कर ले चले,
या ख़ुदा ! इन नाख़ुदाओं से बचा ।

शोला बन जाए न चिन्गारी कहीं,
इस को नफ़रत की हवाओं से बचा ।

तन के उजले मन के काले नाग जो,
उन बज़ाहिर देवताओं से बचा ।

जो बढ़ाएँ प्यास इस की और भी,
इस ज़मीं को उन घटाऒं से बचा ।

भंग कर दें जो तपस्याएँ तमाम
’शेरी’ ऐसी अप्सराओं से बचा ।

चाँद ’शेरी’

सोमवार, 28 जून 2010

इस देश के इन्साँ की पहचान कोई ले आ

इस देश में इन्साँ की पहचान कोई ले आ
आईना नहीं है तो, गिरहबान कोई ले आ ।

देते नहीं भरोसा पैमाने और तराज़ू
दरकार ये न हों वह, ईमान कोई ले आ ।

आधे ढके बदन तो हर घर में नमूँदा हैं
आँखों में शर्म दे वो, सामान कोई ले आ ।

होटल में छुरी काँटे हैं मुर्गमुसल्लम पर
मक्की से महक उठता, दालान कोई ले आ ।

जो वोट दे रहा उस मज़लूम के लिए तू
दो वक़्त रोटियों का ऐलान कोई ले आ ।

यों ही नहीं तसव्वुर अब राम या श्रवण का
माँ-बाप साथ हों वह सन्तान कोई ले आ ।

खूँ लग गया है मुँह पर वे शेर हैं बहुत से
हों बन्द सींखचों में, फ़रमान कोई ले आ ।

आहें किसी दुखी की जिसके दिलों को छू लें
पिछली सदी का ऐसा, इन्सान कोई ले आ ।

मन्दिर में घंटियाँ और मस्जिद में अजानें हैं
पर मन में बस सके वो, भगवान कोई ले आ ।

- जया गोस्वामी