सोमवार, 28 जून 2010

इस देश के इन्साँ की पहचान कोई ले आ

इस देश में इन्साँ की पहचान कोई ले आ
आईना नहीं है तो, गिरहबान कोई ले आ ।

देते नहीं भरोसा पैमाने और तराज़ू
दरकार ये न हों वह, ईमान कोई ले आ ।

आधे ढके बदन तो हर घर में नमूँदा हैं
आँखों में शर्म दे वो, सामान कोई ले आ ।

होटल में छुरी काँटे हैं मुर्गमुसल्लम पर
मक्की से महक उठता, दालान कोई ले आ ।

जो वोट दे रहा उस मज़लूम के लिए तू
दो वक़्त रोटियों का ऐलान कोई ले आ ।

यों ही नहीं तसव्वुर अब राम या श्रवण का
माँ-बाप साथ हों वह सन्तान कोई ले आ ।

खूँ लग गया है मुँह पर वे शेर हैं बहुत से
हों बन्द सींखचों में, फ़रमान कोई ले आ ।

आहें किसी दुखी की जिसके दिलों को छू लें
पिछली सदी का ऐसा, इन्सान कोई ले आ ।

मन्दिर में घंटियाँ और मस्जिद में अजानें हैं
पर मन में बस सके वो, भगवान कोई ले आ ।

- जया गोस्वामी

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