मंगलवार, 29 जून 2010

उन को यारब ! इन बलाओं से बचा

उन को यारब ! इन बलाओं से बचा,
दुल्हनें जलती चिताओं से बचा ।

खुल गई है अब हक़ीकत चाँद की,
हमको परियों की कथाओं से बचा ।

नाव कागज़ की बना कर ले चले,
या ख़ुदा ! इन नाख़ुदाओं से बचा ।

शोला बन जाए न चिन्गारी कहीं,
इस को नफ़रत की हवाओं से बचा ।

तन के उजले मन के काले नाग जो,
उन बज़ाहिर देवताओं से बचा ।

जो बढ़ाएँ प्यास इस की और भी,
इस ज़मीं को उन घटाऒं से बचा ।

भंग कर दें जो तपस्याएँ तमाम
’शेरी’ ऐसी अप्सराओं से बचा ।

चाँद ’शेरी’

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