उन को यारब ! इन बलाओं से बचा,
दुल्हनें जलती चिताओं से बचा ।
खुल गई है अब हक़ीकत चाँद की,
हमको परियों की कथाओं से बचा ।
नाव कागज़ की बना कर ले चले,
या ख़ुदा ! इन नाख़ुदाओं से बचा ।
शोला बन जाए न चिन्गारी कहीं,
इस को नफ़रत की हवाओं से बचा ।
तन के उजले मन के काले नाग जो,
उन बज़ाहिर देवताओं से बचा ।
जो बढ़ाएँ प्यास इस की और भी,
इस ज़मीं को उन घटाऒं से बचा ।
भंग कर दें जो तपस्याएँ तमाम
’शेरी’ ऐसी अप्सराओं से बचा ।
चाँद ’शेरी’
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें